गीता प्रेस, गोरखपुर >> वास्तविक त्याग वास्तविक त्यागजयदयाल गोयन्दका
|
2 पाठकों को प्रिय 420 पाठक हैं |
इस पुस्तक में शिखिध्वज और चूडाला के आख्यान का आरम्भ, शिखिध्वज के गुणों का तथा चूडाला के साथ विवाह और क्रीड़ा का वर्णन किया गया है।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
वास्तविक त्याग
शिखिध्वज और चूडाला के आख्यान का आरम्भ, शिखिध्वज के गुणों का तथा चूडाला
के साथ विवाह और क्रीड़ा का वर्णन
श्रीवसिष्ठजी कहते हैं-रघुनन्दन ! अब तुम अविचल राजा शिखिध्वज की तरह शान्तिपूर्वक अपने स्वरूपों में स्थिति रहो।
श्रीरामजीने पूछा-ब्रह्मन् ! यह शिखिध्वज कौन था और उसने परमपद कैसे प्राप्त किया ? गुरुवर ! उसका चरित्र मुझसे कहिये, जिससे मैं उसे अच्छी प्रकार जान सकूँ।
श्रीवसिष्ठ जी ने कहा-श्रीराम अतिकालीन सातवें मन्तर की चतुर्युगी के द्वापरयुग में कुरुवंश में इसी महासर्ग में शिखिध्वज नाम का राजा हुआ था। जम्बूद्वीप में प्रसिद्ध विन्ध्याचल नाम का राजा हुआ था। जम्बूद्वीप में प्रसिद्ध विन्ध्याचल के समीपवर्ती मालवदेश की उज्जयिनी नगरी में वह राजा राज्य करता था। वह धैर्य, औदार्य आदि गुणों से युक्त था। उसमें क्षमा, शम, दम विद्यमान थे। वह वीरता से पूर्ण था। शुभ कर्मों के अनुष्ठान में लगा रहता था। मितभाषी था। इस प्रकार वह अनेक गुणों का खजाना था। समस्त यज्ञों का निरन्तर अनुष्ठान करता था। उसने बड़े-बड़े धनुर्धारियों को जीत लिया था। वह लोकोपयोगी शुभ कार्यों को करता था और पृथ्वी का पालन करता था।
श्रीवसिष्ठजी कहते हैं-रघुनन्दन ! अब तुम अविचल राजा शिखिध्वज की तरह शान्तिपूर्वक अपने स्वरूपों में स्थिति रहो।
श्रीरामजीने पूछा-ब्रह्मन् ! यह शिखिध्वज कौन था और उसने परमपद कैसे प्राप्त किया ? गुरुवर ! उसका चरित्र मुझसे कहिये, जिससे मैं उसे अच्छी प्रकार जान सकूँ।
श्रीवसिष्ठ जी ने कहा-श्रीराम अतिकालीन सातवें मन्तर की चतुर्युगी के द्वापरयुग में कुरुवंश में इसी महासर्ग में शिखिध्वज नाम का राजा हुआ था। जम्बूद्वीप में प्रसिद्ध विन्ध्याचल नाम का राजा हुआ था। जम्बूद्वीप में प्रसिद्ध विन्ध्याचल के समीपवर्ती मालवदेश की उज्जयिनी नगरी में वह राजा राज्य करता था। वह धैर्य, औदार्य आदि गुणों से युक्त था। उसमें क्षमा, शम, दम विद्यमान थे। वह वीरता से पूर्ण था। शुभ कर्मों के अनुष्ठान में लगा रहता था। मितभाषी था। इस प्रकार वह अनेक गुणों का खजाना था। समस्त यज्ञों का निरन्तर अनुष्ठान करता था। उसने बड़े-बड़े धनुर्धारियों को जीत लिया था। वह लोकोपयोगी शुभ कार्यों को करता था और पृथ्वी का पालन करता था।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book